जानिए किसान नेता योगेन्द्र यादव हैं या ‘सलीम’, बहन है ‘नजमा’, बहुरुपिया बनकर लोगों को कैसे किया गुमराह

न्यूज़ डेस्क। तथाकथित किसान नेता और स्वराज अभियान संगठन के संस्थापक योगेन्द्र यादव को अगर आप पहली बार देखे और नाम पता नहीं हो तो आप धोखा खा जाएंगे। पहनावे और हाव-भाव देखकर आप पहली नजर में कहेंगे कि वो मुस्लिम व्यक्ति है। लेकिन जब आप नाम जानेंगे तो और उलझन में पड़ जाएंगे। जिन्हें दुनिया योगेन्द्र के रूप में जानती है, वो दरअसल सलीम है। एक बहुरुपिया बनकर योगेन्द्र यादव लोगों को गुमराह करने का कोई मौका नहीं चुकते हैं। हर वो मंच पर दिखाई देते हैं, जहां पर मोदी सरकार और देश के खिलाफ आवाजें बुलंद की जाती हैं।

योगेन्द्र यादव के परिवार के लोग और उनके कुछ करीबी अभी भी उन्हें ‘सलीम’ और उनकी बहन नीलम को ‘नजमा’ कहकर पुकारते है। सलीम के योगेन्द्र यादव बनने की कहानी भी काफी हैरान करने वाली है। योगेन्द्र का बचपन हरियाणा के रेवाड़ी गांव में बीता। 1936 में हुए एक सांप्रदायिक दंगे में उनके दादा राम सिंह की हत्या कर दी गई। तब योगेन्द्र यादव के पिता देवेन्द्र यादव मात्र 7 साल के थे। बाद में उन्होंने तय किया की वो अपने बच्चों को मुस्लिम नाम से पुकारेंगे।

योगेन्द्र यादव के मुताबिक उनके दादाजी एक स्कूल के प्रधानाध्यापक थे। उन्हें एक मुस्लिम भीड़ को स्कूल में घुसने से रोकने की कोशिश की। इस दौरान मुस्लिम दंगाइयों ने उनकी हत्या कर दी। इसके बाद उनके पिता देवेन्द्र यादव ने विभाजन के दौरान एक और नरसंहार देखा था। जब बच्चे हुए तो उनके पिता ने साम्प्रदायिक सद्भाव के लिए अपने बच्चों को मुस्लिम नाम दिया। हालांकि, सामाजिक दबाव के कारण पांच साल की उम्र में सलीम का आधिकारिक नाम बदलकर योगेन्द्र कर दिया गया।

दरअसल योगेन्द्र यादव 5 साल की उम्र में स्कूल जाने लगे तो बच्चे सवाल पूछते थे कि तुम हिन्दू हो या मुसलमान? तुम्हारे माता-पिता हिन्दू है या मुसलमान? जब बच्चे मजाक बनाने लगे तो तंग आकर नाम योगेन्द्र रखा गया। योगेन्द्र यादव कहते हैं कि यह नाम मुझे हमेशा अपनेपन का एहसास दिलाता है। यही वजह है कि सलीम आज तक योगेन्द्र से अलग नहीं हुआ। आज भी योगेन्द्र को सलीम के नाम से पुकारा जाता है,ताकि दुनिया के सामने तथाकथित सेक्युलर छवि पेश की जा सके।

2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान योगेन्द्र यादव ने आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर गुरुग्राम से चुनाव लड़ा था। इस दौरान सोशल मीडिया पर कुछ लोगों ने आरोप लगाया था कि चुनाव के दौरान अपने पक्ष में मुस्लिम वोटरों को रिझाने के लिए उन्होंने कहा था कि उनका नाम सलीम है। जब सोशल मीडिया पर सवाल उठाए जाने लगे तो योगेन्द्र यादव को सफाई देने के लिए आगे आना पड़ा। तब उन्होंने ट्वीट करके कहा कि मेरे परिवार के लोग और दोस्त मुझे बचपन से सलीम कहकर ही बुलाते हैं।

2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी के आईटी ऑपरेशंस चीफ अमित मालवीय ने योगेन्द्र यादव के पुराने भाषण का वीडियो का एक हिस्सा ट्वीट किया, जिसमें लिखा, “मैं आमतौर पर सोशल मीडिया पर TV की बहस नहीं लाता, लेकिन योगेंद्र यादव के दो मुंहे चेहरे को बेनकाब करने के लिए एक अपवाद बनता है। यहां एक वीडियो है जिसमें उन्हें मुस्लिम बहुल मेवात इलाके में मुस्लमान बहुल लोगों के बीच अपनी मुस्लिम पहचान को भुनाते हुए देखा जा सकता है। अगर यह राजनीति निंदनीय नहीं है, तो और क्या है?”

योगेन्द्र यादव उर्फ सलीम ने सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्र में अपनी तथाकथित सेक्युलर छवि को भुनाने की हर मुमकिन कोशिश की है। उन्होंने कभी सेफोलॉजिस्ट के रूप में तो कभी बजट विशेषज्ञ के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज करायी है। लेकिन हर बार अपने संकुचित और सरकार विरोधी दलीलों के कारण चर्चा में आए हैं।

किसान आंदोलन में योगेन्द्र यादव ने अपनी मौजूदगी से लोगों को गुमराह करने का काम किया है, जिसका नतीजा गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में उपद्रव के रूप में देखने को मिला। किसानों को आंदोलन के लिए भड़का कर योगेन्द्र यादव अपनी राजनीतिक जमीन को उपजाऊ बनाने और सियासी फसल काटने में लगे हैं।

योगेन्द्र यादव ने बहुरुपिया बनकर हमेशा लोगों को गुमराह किया है। अपनी सेक्युलर छवि को देश विरोधी ताकतों और टुकड़े-टुकड़े गैंग को मजबूत करने में इस्तेमाल किया है। योगेन्द्र यादव ने सीएए का भी खुलकर विरोध किया और सीएए विरोधी आंदोलन में हिस्सा लेकर मुसलमानों को भड़काने की कोशिश की। इसका नतीजा पूरी दुनिया ने देखा, जब दिल्ली में भीषण दंगे हुए। इस दंगे में काफी जान-माल का नुकसान हुआ।

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