क्या भारतीय सैनिकों पर हमले के लिए चीन ने चुना था बेहद घातक माइक्रोवेव वेपंस!, बाहर नहीं भीतर पहुंचाता है चोट

नई दिल्‍ली। भारत और चीन के बीच विवाद के बाद सबकुछ सामान्य करने की कोशिश जारी है। माहौल में काफी हद तक शांति भी महसूस की जा रही है। दोनों देशों के बीच बातचीत से सीमा पर हालात सामान्य होने के आसार हैं। हालांकि चीन पर पूरी तरह से यकीन कर पाना न तो हमारे लिए सही है और न ही ऐसा कर पाना संभव।

ऐसे माहौल के बीच लद्दाख की ऊंची चोटियों से जिस तरह की खबरें आ रही है, उससे यह बात साफ हो जाती है कि एक बार फिर हमें चीन के इरादों को लेकर सावधान हो जाना चाहिए। लद्दाख की ऊंची चोटियों पर कब्‍जे को लेकर चीन की ओर से जो थ्‍योरी बताई जा रही है, यदि वह सही है तो यकीनन यह काफी घातक साबित हो सकती है। इस थ्योरी के मुताबिक, चीन की पीपुल्‍स लिबरेशन आर्मी के जवान माइक्रोवेव वेपंस का इस्‍तेमाल कर रहे हैं।

अमेरिकी मीडिया में छपी एक खबरों पर यकीन करें तो चीन के एक प्रोफेसर ने दावा किया है कि 29 अगस्‍त को चीन के जवानों ने यहां की ऊंची चोटियों को भारतीय जवानों से वापस लेने के लिए माइक्रोवेव वेपंस का इस्‍तेमाल किया था। इन हथियारों के इस्‍तेमाल के बाद भारतीय जवानों को समस्‍या होने लगी और वे चोटियों से चले गए, जिसके बाद चीनी सैनिकों ने उन पर कब्‍जा जमा लिया। हालांकि, भारत ने इस तरह के किसी भी दावे को सिरे से खारिज करते हुए कहा है कि चीन इस बारे में गलत तथ्‍य प्रसारित कर रहा है।

हालांकि इंडियन आर्मी के एडीजी पीआई ने अमेरिकी मीडिया के इस खबर को गलत बताया है। उन्होंने ट्वीट करके यह साफ कर दिया है कि यह झूठी खबर है और ऐसा कुछ भी नहीं हुआ था। बता दें कि बीजिंग बेस्ड रेनमिन यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के जानकार प्रोफेसर जिन कैन के दावों के आधार पर यह रिपोर्ट तैयार की गई थी। अपनी रिपोर्ट में उन्होंने यह साफ किया था कि चीन ने इन हथियारों का इस्तेमाल अगस्त अंत में किया था। इस दौरान भारतीय सैनिकों के लिए यह बड़े ही अचरज की बात थी कि चीन आखिर पैंगोंग शो के दक्षिणी किनारे और चुशुल सब सेक्टर स्थित ऊंचाई में बड़े पैमाने पर अपना अधिकार जमाने में कामयाब कैसे हो गया?

हालांकि इंडियन आर्मी के ADG PI ने अमेरिकी मीडिया के इस खबर को गलत बताया है। उन्होंने ट्वीट करके यह साफ कर दिया है कि यह झूठी खबर है और ऐसा कुछ भी नहीं हुआ था। ज्ञात हो कि बीजिंग बेस्ड रेनमिन यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के जानकार प्रोफेसर जिन कैन के दावों के आधार पर यह रिपोर्ट तैयार की गई थी। अपनी रिपोर्ट में उन्होंने यह साफ किया था कि चीन ने इन हथियारों का इस्तेमाल अगस्त अंत में किया था। इस दौरान भारतीय सैनिकों के लिए यह बड़े ही अचरज की बात थी कि चीन आखिर पैंगोंग शो के दक्षिणी किनारे और चुशुल सब सेक्टर स्थित उंचाई में बड़े पैमाने पर अपना अधिकार जमाने में कामयाब कैसे हो गया?

गौरतलब है कि भारत और चीन के बीच ऐसे हथियारों के इस्‍तेमाल का जिक्र पहली बार हो रहा है। हालांकि, चीन इस तरह के हथियारों का कथित तौर पर दक्षिण चीन सागर में पहले भी इस्‍तेमाल करता रहा है। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर माइक्रोवेव वेपंस क्‍या होते हैं और ये कितने घातक होते हैं।

दरअसल, माइक्रोवेव वेपंस को डायरेक्‍ट एनर्जी वेपंस भी कहा जाता है। इसके दायरे में लेजर और माइक्रोवेव वेपंस दोनों ही आते हैं। ऐसे हथियार बेहद घातक होते हैं। हालांकि, इस तरह के वेपंस से किए गए हमलों में शरीर के ऊपर बाहरी चोट के निशान या तो नहीं होते हैं या काफी कम होते हैं। लेकिन ये शरीर के अंदरूनी हिस्‍सों को खासा नुकसान पहुंचाते हैं।

गौरतलब है कि रॉयल आस्‍ट्रेलियन एयरफोर्स के पायलट दक्षिण चीन सागर में ऐसे हमले झेल चुके हैं। इस तरह के हमलों की एक बेहद खास बात यह होती है कि ये जमीन से हवा में, हवा से जमीन में या जमीन से जमीन में किए जा सकते हैं। ऐसे हमले में हाई एनर्जी रेज छोड़े जाते हैं। ये किरणें इंसान के शरीर में प्रविष्‍ट कर उनके शरीर के हिस्‍सों को नुकसान पहुंचा सकती हैं।

अगर हम आस्‍ट्रेलिया के पायलट्स की बात करें तो यह साफ हो जाएगा कि उन्‍हें इस तरह के हमलों के बाद आंखों में जलन, शरीर में हल्‍के घाव और कुछ अंदरूनी चोट भी आई थी। ऐसे हमलों का मकसद ज्‍यादातर चेतावनी देने भर का होता है। युद्ध के मैदान में इस तरह के हमलों का बड़े पैमाने पर इस्‍तेमाल फिलहाल कम ही देखा गया है। हालांकि ऐसे हथियार दुनिया के कुछ बड़े देशों के पास ही मौजूद हैं। माइक्रोवेव वेपंस के जरिए निकलने वाली रेडिएशन बीम में किसी भी तरह की कोई आवाज नहीं होती। इसे देख पाना भी संभव नहीं होता। हाई फ्रीक्‍वेंसी पर छोड़ी गई ये किरणें दुश्‍मन के लिए काफी घातक साबित हो सकती हैं।

माइक्रोवेव वेपंस का इस्तेमाल कई तरह की बैलेस्टिक मिसाइल, हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल, हाइपरसोनिक ग्‍लाइड मिसाइल को रोकने के लिए भी इस्‍तेमाल किया जाता है। रूस, चीन, भारत, ब्रिटेन भी इस तरह के हथियारों के विकास में लगे हैं। वहीं, तुर्की और ईरान का दावा है कि उनके पास इस तरह के हथियार मौजूद हैं। तुर्की का तो यहां तक का दावा है कि उसने अगस्‍त 2019 में इस तरह के हथियार का इस्‍तेमाल लीबिया में किया था। हालांकि, एक तथ्‍य ये भी है कि इस तरह के हथियार अभी तक केवल प्रयोग तक ही सीमित हैं। माइक्रोवेव वैपंस के अंदर पार्टिकल बीम वैपन, प्‍लाज्‍मा वेपन, सॉनिक वेपन, लॉन्‍ग रेंज एकॉस्टिक डिवाइस भी आते हैं।

अमेरिका के पास इस तरह के वेपंस में एक्टिव डिनाइल सिस्‍टम है, जिसे यूएस एयरफोर्स ने विकसित किया है। इसे अक्‍सर हिंसाग्रस्‍त क्षेत्रों में प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए उपयोग में लाया जाता है। इससे शरीर में दर्द होने लगता है। यह इलेक्‍ट्रॉनिक उपकरणों को भी नष्‍ट करने की ताकत रखता है। इसके अलावा विजिलेंट आई के नाम से भी एक प्रपोज्ड एयर डिफेंस सिस्टम है। इस प्रोजेक्‍ट के तहत किसी भी तरह के हवाई हमले को नाकाम करने की तकनीक विकसित की जा रही है।

अमेरिका के पास इस तरह के वेपंस में एक्टिव डिनाइल सिस्‍टम है, जिसे यूएस एयरफोर्स ने विकसित किया है। इसे अक्‍सर हिंसाग्रस्‍त क्षेत्रों में प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए उपयोग में लाया जाता है। इससे शरीर में दर्द होने लगता है। यह इलेक्‍ट्रॉनिक उपकरणों को भी नष्‍ट करने की ताकत रखता है। इसके अलावा विजिलेंट आई के नाम से भी एक प्रपोज्ड एयर डिफेंस सिस्टम है। इस प्रोजेक्‍ट के तहत किसी भी तरह के हवाई हमले को नाकाम करने की तकनीक विकसित की जा रही है।

इसके अलावा इस तकनीक को हमला करने आ रही मिसाइल का पता लगाने के लिए भी विकसित किया जा रहा है। बोफोर्स एचपीएम ब्‍लैकआउट एक ऐसा ही हाईपावर माइक्रोवेव वेपन है, जो किसी भी तरह के उपकरणों को नष्‍ट कर सकता है। इसके अलावा फाइटर एयरक्राफ्ट पर लगा एईएसए रडार भी इसी तकनीक पर काम करता है।

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