विदा होते वर्ष 2020 को किस तरह बयां करेंगे आप? पीएम मोदी ने देशवासियों से मांगा जवाब, पूछ नव वर्ष से क्या उम्मीदें हैं

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कोविड-19 से प्रभावित रहे साल 2020 पर शुक्रवार को लोगों से उनकी राय मांगी और आने वाले साल से उनकी उम्मीदों के बारे में भी पूछा। पीएम मोदी ने 27 दिसम्बर को उनकी ‘मन की बात’ कार्यक्रम से पहले लोगों से उनकी राय मांगी है। ये 72वां संस्करण होगा, जो इस साल का आखिरी प्रसारण होगा।

मोदी ने ट्वीट किया, ‘‘ इस साल को आप किस तरह बयां करेंगे? 2021 से आपकी क्या उम्मीदें हैं? 27 दिसम्बर को ‘मन की बात’ के इस साल के आखिरी कार्यक्रम से पहले अपने विचार साझा करें।

‘एमवाय जीओवी’, ‘नमो’ एप पर अपने विचार साझा करें या 1800-11-7800 नंबर पर अपना संदेश रिकॉर्ड करें।” ‘मन की बात’ के मासिक कार्यक्रम में विभिन्न मुद्दों पर मोदी रेडियो पर लोगों के साथ अपने विचार साझा करते हैं।

अपने मासिक रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ के 29 नवंबर के कार्यक्रम में पीएम मोदी ने अपने पिछले संस्करण में देश में कोरोना की स्थिति से लेकर किसान कानून पर अपने विचार साझा किए। पीएम मोदी ने नए कानून को लेकर कहा कि ये किसानों को नए अधिकार दे रहा है। ये खेती को नए आयाम देगा। इससे किसानों की परेशानियां दूर होंगी। इस दौरान पीएम मोदी ने कई अहम मुद्दों पर भी अपने विचार सामने रखे।

कृषि सुधारों की बात करते हुए पीएम मोदी ने कहा था कि बीते दिनों हुए कृषि सुधारों ने किसानों के लिए नई संभावनाओं के द्वार भी खोले हैं। सालों से किसानों की जो मांग थी, जिन मांगों को पूरा करने के लिए किसी न किसी समय में हर राजनीतिक दल ने उनसे वायदा किया था, वो मांग पूरी हुई हैं। इन सुधारों से न सिर्फ किसानों के अनेक बन्धन समाप्त हुए हैं, बल्कि उन्हें नए अधिकार भी मिले हैं।

पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा था कि हर भारतीय को ये जानकर गर्व महसूस होगा कि देवी अन्नपूर्णा की एक प्राचीन मूर्ति को कनाडा से भारत वापस लाया जा रहा है। लगभग 100 साल पहले 1913 में, ये मूर्ति वाराणसी के एक मंदिर से चुराई गई थी और देश के बाहर तस्करी की गई थी।

कार्यक्रम के दौरान पीएम मोदी ने भारत की संस्कृति को लेकर भी बातें कही थी। उन्होंने कहा कि भारत की संस्कृति और शास्त्र, दोनों हमेशा से ही पूरी दुनिया के लिए आकर्षण के केंद्र रहे हैं। कई लोग तो इनकी खोज में भारत आए और हमेशा के लिए यहीं के होकर रह गए, तो कई लोग वापस अपने देश जाकर इस संस्कृति के संवाहक बन गए।

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