ओडिशा: महानदी में 11 साल बाद उभरा 500 वर्ष पुराना गोपीनाथ मंदिर, नदी से बाहर दिखने लगा मंदिर का शिवाला, देखने को जुटी भीड़

न्यूज़ डेस्क। ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर के नयागढ़ जिले में महानदी के जल में 500 साल पुराने गोपीनाथ मंदिर के अवशेष दिखाई दिए हैं। कहा जा रहा है इससे पहले यह मंदिर 11 साल पहले नजर आया था। इसके बाद इसके अग्र भाग के दर्शन पानी का स्तर कम होने से अब फिर हुए हैं। इसे देखने के लिए पद्मवती गाँव के पास काफी संख्या में लोग पहुॅंचे।
ज्ञात हो कि, नयागढ़ जिल में यह खोज INTACH की महानदी वैली हेरिटेज साइट्स डॉक्यूमेंटेशन प्रोजेक्ट का हिस्सा है। प्रोजेक्ट असिस्टेंट दीपक कुमार नायक ने ऐतिहासिक धरोहरों के बारे में रूचि रखने वाले रवीन्द्र कुमार राणा की मदद से इस साइट का मुआयना किया और बताया कि गोपीनाथ मंदिर भगवान श्रीकृष्ण का ही मंदिर था।
महानदी के जल से 500 साल पुराना मंदिर उजागर हुआ।यह खोज INTACH की महानदी वैली हेरिटेज साइट्स डॉक्यूमेंटेशन प्रोजेक्ट का हिस्सा है, जिसे इतिहासकार अनिल धीर द्वारा चलाया जा रहा है।
महानदी नदी में डूबा एक प्राचीन मंदिर, नयागढ़ जिले में 11 साल बाद फिर से प्रकट हुआ है। #सनातन_संस्कृति pic.twitter.com/NZ5m8AQCT5— Neetu Dabas,(नीतू डबास)?? (@INeetuDabas) June 11, 2020
फेसबुक पोस्ट में दीपक कुमार नायक ने इस मंदिर को प्रोजेक्ट में शामिल करने तक की पूरी कहानी साझा की है। उन्होंने बताया कि अतीत में पद्मवती गाँव सतपतना का हिस्सा था। यानी 7 गाँव का गठजोड़। 19 वीं शताब्दी में नदी के स्तर में भारी बदलाव आने के कारण यहाँ के लोग ऊँचे स्थानों पर जा बसे। इस दौरान ग्रामीणों ने न केवल खुद के स्थान को बदला, अपितु मंदिर के देवताओं को भी अपने साथ ले गए।
स्थानीय लोगों के मुताबिक, उस जगह करीब 22 मंदिर थे। जो पानी का स्तर बढ़ने के बाद नदी में विलीन हो गए। गोपीनाथ मंदिर का अग्र भाग पानी का स्तर कम होने पर इसलिए दिखाई देता है, क्योंकि यह उस समय का समय बड़ा मंदिर था। लोग बताते हैं कि इससे पूर्व भगवान गोपीनाथ मंदिर के मस्तक के दर्शन 11 वर्ष पूर्व हुए थे। पर तब यह बहुत कम समय के लिए उभरा था। लेकिन, पिछले एक साल में इसके दर्शन 4-5 बार हुए हैं।
दीपक कुमार नायक के अनुसार, तीन महीने पहले उन्हें उनके मित्र रवींद्र राणा ने कॉल करके इस बारे में बताया था। इससे पहले उन्हें संबलपुर में कुछ नदीजल में लीन हुए मंदिर के बारे में पता था लेकिन महानदी घाटी के निचले-मध्य क्षेत्र में जलमग्न मंदिर के बारे में सुनना उनके लिए एक असाधारण बात थी। बस फिर क्या? इसके बाद उन्होंने अपने प्रोजेक्ट कॉर्डिनेटर को इस संबंध में बताया और उन्होंने इसे अपने अभियान “Mahanadi Valley Heritage Sites Documentation” का हिस्सा बनाया।
An archaeological survey team from the Indian National Trust for Art and Cultural Heritage (INTACH) has claimed that they have discovered an ancient submerged temple in the Mahanadi upstream at Cuttack in Odisha. The temple dates back to the 15th Century. Here are a few pictures. pic.twitter.com/Y2jpD6teDq
— Soumyadipta (@Soumyadipta) June 12, 2020
दीपक के अनुसार, अनिल धीर, उनकी बातें सुनकर और स्पॉट पर जाने को तैयार हुए और उन्होंने 3 तीन दिन के अंदर जाकर इस जगह का मुआयना करने का मन बनाया। लेकिन कोविड-19 के कारण उनका प्लान चौपट हो गया। पर, जैसे ही कुछ दिन पहले लॉकडाउन खत्म हुआ, वह फौरन जगह पर गए। लेकिन करीब तीन बार उन्हें मंदिर जल के अंदर मिला।
दीपक कहते हैं कि उन्होंने हर बार कोशिशों के असफल होने पर अपनी उम्मीद छोड़ दी थी कि वह शायद इस जगह को दस्तावेजों में न शामिल कर पाएँ। लेकिन 7 जून को अचानक उनके मित्र राणा बाबू ने उन्हें बताया कि मंदिर का ऊपरी भाग अब नदी में कुछ दिनों से दिखने लगा है। यह सुनते ही दीपक ने अपने वरिष्ठ अनिल धीर को इस बारे में बताया। लेकिन दुर्भाग्यवश उस समय अनिल उनके साथ साइट पर नहीं जा पाए।
अगली सुबह 7 बजे दीपक बैदेश्वर पहुँचे। इसके बाद उन्होंने पद्मवती गाँव जाने का सफर अपने मित्र राणा के साथ नाव के जरिए तय किया। करीब 10 मिनट बाद वह मंदिर के अग्र भाग के पास थे। मंदिर का मस्तक उन्हें स्पष्ट दिख रहा था। उन्होंने इस दौरान तस्वीर खींचकर कई प्रमाण लेने का प्रयास किया। लेकिन नदी का वेग ऐसा था कि यह सब असंभव लगने लगा।
According to researchers, this is the temple of deity Gopinath which was in Satapatana of 15th century. The temple was submerged when the Mahanadi changed course and submerged the area. The temple is 60 feet in height.
INTACH’s Project Assistant Deepak Kumar Nayak discovered this pic.twitter.com/EOnMCY09zx— Soumyadipta (@Soumyadipta) June 12, 2020
इस बीच उनके साथ नौका में आए, बालुंकेश्वर मंदिर के पुजारी ने नदी के अग्र भाग पर कूदकर नाव को स्थिर किया और वह कुछ तस्वीर खींच पाए। बता दें सोशल मीडिया पर गोपीनाथ मंदिर की यही तस्वीरें इस समय वायरल हो रही हैं।
दीपक के अनुसार, पद्मवती गाँव में वर्तमान में स्थित गोपीनाथ मंदिर में जल में विलीन मंदिर की असली मूर्ति विद्यमान है। इसके अलावा प्रोजेक्ट असिस्टेंट दीपक कहते हैं कि गोपीनाथ मंदिर को बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाला पत्थर वहीं लग रहा है जिनका प्रयोग 15वी व 16वीं शताब्दी में मंदिरों को बनाने के लिए किया जाता था।
उन्होंने बताया जब यह यह क्षेत्र पानी में विलीन हुआ, उस समय वहाँ कई देवता थे जिन्हें स्थानांतरित कर दिया गया था। उनमें से गोपीनाथ, नृसिंह, रास बिहारी, कामना देवी और दधिभमण उल्लेखनीय थे। जिन्हें आज भी निकटवर्ती टिकरीपाड़ा गाँव और पद्मवती गाँव में पूजा जाता है।
ओडिशा में करीब 500 साल पुराना एक मंदिर नदी से बाहर आ गया। मंदिर का शिवाला नदी से बाहर दिखने लगा।
यह मंदिर 15वीं सदी का है, इसमें भगवान गोपीनाथ की प्रतिमाएं थीं, जिन्हें भगवान विष्णु का रूप माना जाता है।
विश्व कहीं भी खुदाई होती है तो मंदिर ही मिलता है, अन्य धर्मस्थान नहीं। pic.twitter.com/5WqtceEOBN
— Prashant Patel Umrao (@ippatel) June 12, 2020
दैनिक जागरण की रिपोर्ट के मुताबिक पद्मावती ग्रामवासी सनातन साहू ने कहा है कि सन् 1933 में हमारा गाँव सम्पूर्ण रूप से नदी में विलीन हो गया था। उस समय हमारी उम्र 6 साल थी। हम पाँच भाई-बहनों ने पद्मवती यूपी स्कूल में शरण ली थी। उस साल बाढ़ आने के साथ नदी गतिपथ बदलकर हम सबके लिए काल बन गई थी।
इस मंदिर के संबंध में और अपने प्रोजेक्ट के बारे में जानकारी देते हुए महानदी प्रोजेक्ट के प्रमुख अनिल धीर ने कहा कि इंडियन नेशनल ट्रस्ट फार आर्ट एण्ड कल्चरल हेरिटेज (इनटाक) की तरफ से डॉक्यूमेंटेशन ऑफ दि हेरिटेज आफ दि महानदी रिवर वैली प्रोजेक्ट शुरू किया गया है।
छत्तीसगढ़ से महानदी के निकलने वाले स्थान से जगतसिंहपुर जिले के पारादीप तक 1700 किमी. (दोनों तरफ) के किनारे से 5 से 7 किमी. के बीच सभी पुरानी कीर्तियों की पहचान की जाएगी। इन तमाम सामग्रियों की रिकार्डिंग की जा रही है। फरवरी महीने में इसकी सूची प्रकाशित की जाएगी।
धीर ने कहा है कि ओडिशा में ऐसे बहुत से मंदिर हैं जो पानी में डूबे हुए हैं। इसमें हीराकुद जलभंडार में 65 मंदिर शामिल हैं। नदियों में भी बहुत से मंदिर समाहित हैं, जिनका सर्वे होना चाहिए। कुछ मंदिर अभी भी खड़े हैं और कुछ ढह गए हैं। मॉडल के तौर पर गोपीनाथ मंदिर को पुन: महानदी से निकालकर जमीन में स्थापित किया जाना चाहिए।