550 वां प्रकाश पर्व: जानें स्वर्ण मंदिर यानी हरमिंदर साहिब का महत्व, दर्शन कर कृतार्थ होते हैं श्रद्धालु
न्यूज डेस्क। कार्तिक पूर्णिमा मंगलवार, 12 नवंबर को है और इसी दिन सिख धर्म के संस्थापक गुरुनानक देव की जयंती भी है। ये दिन सिख और हिन्दू धर्म के लिए बहुत खास है। इस साल गुरुनानक की 550वीं जयंती है। सिख श्रद्धालु इस दिन सभी गुरुद्वारों में बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। पंजाब के अमृतसर में स्थित स्वर्ण मंदिर दुनियाभर के प्रमुख गुरुद्वारों में से एक है। यहां देश-विदेश से हर धर्म के लोग पहुंचते हैं और पूरी आस्था के साथ सिर झुकाते हैं। इसे हरमंदिर साहिब भी कहा जाता है।
अमृतसर का स्वर्ण मंदिर भारत के सबसे प्रसिद्द तीर्थस्थलों में से एक है जहाँ रोज़ भक्तों का लाखों की संख्या में हुजूम उमड़ता है। दुनिया के कोने-कोने से भक्त और पर्यटक इस महा निर्माण के दर्शन कर तृप्त होने आते हैं। सिक्ख धर्म का प्रमुख तीर्थस्थल होने की वजह से इस मंदिर ने अमृतसर को उसके उत्कृष्ट भव्यता के साथ और प्रसिद्द बना दिया है। स्वर्ण मंदिर को श्री दरबार साहिब और श्री हरमंदिर साहिब (देवस्थान) के नाम से भी जाना जाता है। स्वर्ण मंदिर को धार्मिक एकता का भी स्वरूप माना जाता है।
एक सिक्ख तीर्थ होने के बावजूद हरिमंदिर साहिब जी यानि स्वर्ण मंदिर की नींव सूफी संत मियां मीर जी द्वारा रखी गई थी। लोगों की अथाह श्रद्धा से जुड़ा हुआ यह गुरुद्वारा भक्तों के साथ-साथ पर्यटकों को भी अपनी असीम कृपा से बार-बार अपनी और आकर्षित करता है।
इसीलिए कहते हैं स्वर्ण मंदिर :
मंदिर के बाहरी परत पर चढ़े हुए सोने की चादर की वजह से पड़ा, जो इस मंदिर के बनने के 200 सालों बाद महाराजा रंजीत सिंह द्वारा इसमें जोड़ा गया। इससे पहले मंदिर को दरबार साहिब या हरमंदिर साहिब के नाम से ही जाना जाता था।
अमृत सरोवर :
‘अमृत सरोवर’ मंदिर के प्रमुख आकर्षणों में से एक है। ऐसा माना जाता है कि इस सरोवर में औषधीय गुण हैं। जो भी इस मंदिर के दर्शन करने आता है, पहले इसी सरोवर में अपने हाथ पैर धोकर मंदिर के अंदर प्रवेश करते हैं। कई भक्तगण अपनी श्रद्धानुसार डुबकी भी लगाते हैं।
मंदिर के हैं चार प्रवेशद्वार :
मंदिर के चार प्रवेशद्वार हैं, जो चारों दिशाओं पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण की तरफ हैं। ये प्रवेशद्वार यह सूचित करते हैं कि यह मंदिर दुनिया के हर भाग से भक्तों का बिना किसी रुकावट के पुरे दिल से स्वागत करता है। यहाँ किसी भी धर्म के, किसी भी जाती के, किसी भी संप्रदाय के पर्यटकों और भक्तों को आने की अनुमति है।
यहां है सबसे बड़ी लंगर सेवा :
स्वर्ण मंदिर हर रोज़ दुनिया की सबसे बड़ी लंगर सेवा का आयोजन करता है, जहाँ रोज़ लगभग लाखों की संख्या में भक्तों को खाना खिलाया जाता है।
मंदिर तक जाने वाली सीढ़ियां :
मंदिर में प्रवेश करने के लिए बनी सीढ़ियाँ नीचे की ओर जाती हैं, जबकि अन्य हिन्दू मंदिरों में सीढ़ियाँ मंदिर के मुख्य परिसर में ऊपर की ओर ले जाती हैं। यह इस तरह से डिज़ाईन किया गया है, जो जीने के विनम्र तरीके को दर्शाता है।
भक्तों में समानता :
जब यहाँ लंगर बंटता है तब सारे लोग, भक्तगण चाहे वो किसी भी धर्म या संप्रदाय के हों, सब एक साथ नीचे एक रेखा में बैठ कर लंगर का सेवन करते हैं। यहाँ हर भक्तों को समान समझ जाता है।
यहां होता है अखंड पाठ :
प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान ब्रिटिश सरकार ने यहीं पर अपनी जीत के लिए अखंड पाठ का आयोजन किया था।स्वर्ण मंदिर के पास ही अन्य आकर्षक स्थल हैं जहाँ आप अपनी अमृतसर की यात्रा में ज़रूर ही जाएँ, जैसे वाघा बॉर्डर, दुर्घानिया मंदिर, बठिंडा किला और रामबाग।
कई बार टूटा है हरमंदिर साहिब :
यहां प्रचलित मान्यता के अनुसार पुराने समय में स्वर्ण मंदिर को कई बार नष्ट किया गया। हर बार भक्तों ने इसे फिर से बनाया। मंदिर को कब-कब नष्ट किया गया और कब-कब बनाया गया, ये जानकारी मंदिर में देखी जा सकती है। 19वीं शताब्दी में अफगान हमलावरों ने इस मंदिर को पूरी तरह नष्ट कर दिया था। इसके बाद महाराजा रंजीत सिंह ने इसे दोबारा बनवाया और सोने की परत से सजाया था। इसी वजह से इसे स्वर्ण मंदिर कहा जाता है। सिक्ख धर्म में गुरु को ही ईश्वर के समान माना जाता है।
स्वर्ण मंदिर में प्रवेश करने से पहले लोग मंदिर के सामने सिर झुकाते हैं, फिर पैर धोने के बाद सीढ़ियों से मुख्य मंदिर तक पहुंचते हैं। सीढ़ियों के साथ-साथ स्वर्ण मंदिर से जुड़ी घटनाएं और इतिहास लिखा हुआ है।
स्वर्ण मंदिर की वास्तु कला
मान्यताओं के अनुसार इस गुरुद्वारे का नक्शा लगभग 400 साल पहले गुरु अर्जुन देव जी ने तैयार किया था। यह गुरुद्वारा वास्तु कला की बहुत ही सुंदर मिसाल है। मंदिर में की गई नक्काशी और सुंदरता सभी का मन मोह लेती है। गुरुद्वारे में चारों दिशाओं में दरवाजे हैं।
मंदिर में हमेशा लंगर चलता है। यहां प्रसाद ग्रहण करने के लिए लोगों की भीड़ लगी रहती है। लंगर की पूरी व्यवस्था शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति की ओर से की जाती है। हर रोज यहां हजारों लोग लंगर का प्रसाद ग्रहण करते हैं। स्वर्ण मंदिर आने वाले श्रद्धालुओं के लिए श्री गुरु रामदास सराय में ठहरने की व्यवस्था भी है। मंदिर में एक सरोवर भी है। यहां आने वाले सभी श्रद्धालु इस सरोवर में स्नान करते हैं और फिर गुरुद्वारे में मत्था टेकने जाते हैं।